धनबाद। शक्ति मंदिर में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को भगवत कथा की महिमा का वर्णन करते हुए कथावाचिका पूज्या कृष्णप्रिया ने कहा भागवत कथा हमें जीवन जीना सिखाती हैं। श्रीमद भागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं। कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जागृत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। कथा की सार्थकता जब ही सिद्ध होती है जब इसे हम अपने जीवन में व्यवहार में धारण कर निरंतर हरि स्मरण करते हुए अपने जीवन को आनंदमय, मंगलमय बनाकर अपना आत्म कल्याण करें अन्यथा यह कथा केवल ‘ मनोरंजन ‘, कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी । भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है।”
भागवत महात्यम प्रसंग को आगे बढाते हुए कृष्णप्रिया ने कहा कुछ लोगों का कहना है कि जो लोग जितनी पूजा पाठ करते हैं, वही ज्यादा परेशान है और दुख प्राप्त करते हैं,जबकि ऐसा नहीं है। यह सब कर्मो के फल पर आधारित है। सात जन्म पहले किए गए गलत कर्मों का फल इंसान को भुगतना जरूर पड़ता है। भीष्म पितामाह का उदाहरण सबके सामने है। कर्मों का फल को कोई नहीं टाल सकता वह तो भोगना ही पड़ता है लेकिन जब हम भगवान की भक्ति और उनका नाम जाप करते हैं तो हमारा भविष्य तो सुखद होता ही है साथ ही पापकर्मो से मिलने वाले फल का भी प्रभाव घट जाता है, इसलिए जरूरी है कि इंसान को सदैव सदमार्ग पर चलते हुए अच्छे कार्य करने चाहियें। दुसरो की सहायता करनी चाहिए और भक्ति करनी चाहिए।
कृष्ण प्रिया ने बतलाया कि भगवान के विग्रह के दर्शन करते समय आँखे बंद न करें। उनकी अलौकिक छवि का नेत्रों के माध्यम से अधिक से अधिक रसपान करना चाहिए। उनके वस्त्रों व श्रंगार की मन ही मन प्रशंसा करें,साथ ही जो सम्भव हो फल, फूल, दीप इत्यादि पूरे भक्ति भाव से अर्पित करें। याद रखें वो ईश्वर हैं उन्हें किसी चीज की आवश्यकता नहीं है लेकिन जिस प्रकार एक बच्चा अपने पिता से पैसे लेकर उससे उन्हें ही खरीद कर चॉकलेट इत्यादि कुछ दें तो पिता को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव होगा उसी प्रकार जब हम ईश्वर को कुछ अर्पित करते हैं तो वे हमारे भाव को देखकर ही गदगद हो जाते हैं और भगवान के पास केवल मांगने ही न जायें, कभी – कभी उनसे मिलने भी जाएं। उनका कुशल क्षेम पूछने भी जाये। वे अन्तर्यामी हैं। अपने मन की बात व जीवन के अभाव भक्तिभाँति जानते हैं। वे बिन मांगे आपकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा कि- आज युवाओं में में संघर्ष करने की प्रवृति कम होती जा रही है। यह बेहद चिंता का विषय है। युवा वर्ग संघर्ष किए बिना सफलता पाना चाहता है, जो संभव नहीं है। सफलता पाने के लिए आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी है। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से भर से आत्मविश्वास बढ़ता है। जब भी वक्त मिले युवा वर्ग भक्ति से संबंधित कार्यक्रम देखें और साथ ही योग इत्यादि द्वारा अपने दृढ़ संकल्प इच्छाशक्ति को बढ़ाएं। स्वयं को छोटे – छोटे टास्क दें और उन्हें पूरा करें। इससे दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास दोनों में वृद्धि होगी.
कथा में अत्यंत मधुर भजनों का गायन कृष्णप्रिया के दिव्य मुखारविंद से किया गया। इसके अलावा कथा वाचक कृष्णप्रिया ने कई ज्ञानमयी और भक्ति पूर्ण प्रसंग सुनाए। कथा के अंत में भजनों पर श्रद्धालु खूब झूमे और श्रीमद्भागवत पुराण कथा आरती के बाद तृतीय दिवस की कथा को विश्राम दिया गया।